Thursday, August 9, 2012

भ्रष्टाचार मिटाने की पहल


संस्थाओं के लिए दिए गए सरकारी फंड का 40 प्रतिशत उनके तंत्र के लोग ही रखते हैं बाकि 60 प्रतिशत ही संस्था तक पहुँच पाता है|


लगभग दस साल पहले प्रारंभ हुई गैर सरकारी संस्था ‘नवजीवन’ सामाजिक, न्यायिक और स्वास्थ्य जैसे तीन क्षेत्रों में काम कर रही  है। सामाजिक कार्य के तौर पर लोगों को जागरूक करना, जिससे समाज में फैल रही परेशानियों का हल निकाला जा सके। स्वास्थ्य शिवरों का अयोजन, झुग्गी-झोपड़ी के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आहार में न्यूट्रिसन देना और जरूरत मंदो को न्याय दिलाने की अनूठी मुहिम, यहां जारी है। इनके सदस्यों की संख्या 162 हैं। संस्थापक शशिकांत पांडा का कहना है कि वह देश से भ्रष्टाचार को मिटाना चाहते हैं। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा नीचले या मध्य वर्ग को ही भुगतना पड़ता है। इस कारण उनका जोर न्यायिक व्यवस्था की ओर ज्यादा है, यहां लोक या जन शिकायत को लिया जाता है। जिसके लिए देश में तो मदद के लिए प्रधानमंत्री से लेकर जिलाधिकारी तक सभी ने इनकी सराहना की हैं। विदेशों में भी 176 देशों से मानवाधिकार मुद्दे पर साथ मिलकर काम हो रहा है।
संस्था का मानना है कि गरीब और बेसहारों की सेवा करना भगवान की सेवा करने जैसा  है। संस्था की योजना है कि आने वाले समय में भारत के हर एक गांव में इनके स्वयं सेवक मदद के लिए उपस्थित होंगे। इन्होंने हिमाचल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, उडि़सा, बंगाल, मुम्बई, यूपी में समाज और न्यान को लेकर काफी लोगों की मदद की है। अब इनका रूख दक्षिण भारत की ओर हो रहा है। वर्तमान समय में एनजीओ पैसा कमाने का धंधा बनता जा रहा है ऐसे में पैसा उनके हाथों में जाता है जिन्हें कमाने की धुन है न की वास्तव में काम करने वालों के पास। 
शिक्षा के लिए इनका विद्यालय मदनपुर खादन में खोला गया है जिसमें श्री राम शिक्षा पीठ के साथ मिलकर लगभग 200 अनाथ, निसहाय, गरीब बच्चों को शिक्षित किया जाता है। संस्था की यूएनओ में सदस्यता की चाहत वास्तविक हालात को समझने और सही रूप में काम कर पाने के लिए है। क्योंकि सिर्फ कह देना कि एनजीओ के पास विदेशी रुपया आ रहा है काफी नहीं है। क्या, कितना, कैसे, किसके लिए और कब आ रहा है इसकी जानकारी होना भी आवश्यक है। आर्थिक आभाव में समाज सेवा करना थोड़ा मुष्किल हो जाता है। फिर भी इस संस्था को आ रही कोई भी सहायता सीधे जरूरतमंद तक पंहुचाया जाता है। 
संस्था ने दिल्ली समाज कल्याण विभाग के बारे में साफ कहा है कि संस्थाओं के लिए दिए गए सरकारी फंड का 40 प्रतिशत उनके तंत्र के लोग ही रखते हैं बाकि 60 प्रतिशत ही संस्था तक पहुँचता है। इन्होंने पौश्टिक आहार, प्रदूषण, जल, मिट्टी, पोलियों और एड्स जागरूकता आंदोलन, कृषि, प्राकृतिक आपदा, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर देश भर में काम किया है। इसके बाद भविष्य में इनकी बाल अनाथालय निर्माण की योजना है। नेक काम में जिस तरह अड़चने आती है इनके साथ भी आई। सरकार को पूछे गए सवालों का जवाब न मिलना या मदद के नाम पर केवल आश्वासन देना। आर्थिक संकट में भी संस्था को काम के साथ जीवित रखना। अन्य एनजीओ से तालमेल के बारे में इनका मानना है कि वैश्विक तौर पर काम करना ज्यादा उचित है। भारत को भ्रष्ट मुक्त करके ही सबका कल्याण हो सकता है। सिर्फ लोग अपना-अपना काम ही ईमानदारी से करने लगे तो काफी समस्याओं का निवारण हो जाएगा। 
इन सब के बावजूद एक बात साफ है कि इतने व्यापक क्षेत्र को अपनी संस्था में शामिल करने का खामियाजा सामने आने लगा है। संस्था के लगन में कोई कमी नहीं है लेकिन सबसे अलग बात यह है कि हर तरह के रुपयों के लेन-देन, काम आदि का पूरा व्योरा इनकी वेबसाइट पर उपलब्ध है जो कि बहुत कम संस्थाएं ही करती है। संस्था की व्यापकता के कारण सभी क्षेत्रों में बराबर ध्यान नहीं दिया जा सकता। फिर भी मुख्य मुद्दा समाज के कल्याण का है तो मुसिबत जिस क्षेत्र में होगी वहीं काम करना प्राथमिकता है। आज छोटे से दफ्तर में काम करते हुए भी व्यापक सोच रखने का जज्बे की जरूरत अन्य संस्थाओं को भी है। 

2 comments:

  1. अंदर की बात सुषमा जी , सोचना पडेगा समाज और सर्कार को
    मेरे भी ब्लॉग पर पधारें ..

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  2. Sochane se kaam nahi chalega Pandey ji, Kuchh karana bhi Padega. Lekin kya Karana padega ye Jarur Sochiye.
    Good work Sush... go on...

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