Saturday, April 14, 2012

एनजीओ समाज का अहम हिस्सा है

MR. SANTANU MISHRA

आई एम कलाम डाक्युमेंट्री बनाने वाली स्माइल फाउंडेसन राष्ट्रीय स्तर की 2002 में स्थापित विकास संस्था है। वर्तमान समय में इसकी पहुँच सीधे तौर पर 2 लाख गरीब बच्चों  और युवाओं तक है। देश के 25 राज्यों में 160 कल्याणकारी प्रोजेक्ट चल रहे हैं। पहला मिशन एजुकेशन दूसरा स्टेप तीसरा स्मसइल ऑन व्यील और चौथा स्वाभिमान। इस संस्था के निदेशक सांतनु मिश्रा से सुषमा सिंह की एनजीओ मुद्दे पर आधारित बातचीत का कुछ अंश प्रस्तुत है -

एनजीओ चलाने के पीछे वजह क्या होती है। पैसा या मुद्दा?
एनजीओ को चलाने के लिए कारण ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। स्माइल की शुरूआत का भी एक कारण है कमजोर वर्ग को आगे लाने की भावुकता से इस फाउंडेसन की नीव पड़ी। हम समाज को क्या और कैसे दे सकते हैं। इस सोच के साथ ही प्राइमरी स्तर पर बच्चों को शिक्षित कर समाज की जड़ो को मजबूत करने का प्रयास किया गया।  मजबूरी में अपना बचपन खो रहे बच्चों को सही दिशा देना ही स्माइल की कोशिश है। अपने इसी मुद्दे के साथ हम आज भी काम कर रहे हैं। यहां पर बहुत सी समस्याएं है केवल कुछ एनजीओं से इसका समाधान नहीं हो सकता है। 
 
प्राकृतिक आपदाओं के ठीक बाद एनजीओ की संख्या में अचानक इतनी ज्यादा बढ़ोत्तरी के क्या कारण है?
एनजीओ प्राकृतिक आपदाओं में दो प्रकार से काम करती है। एक तो आपदाओं में तुरन्त राहत पहुंचाने का दूसरा उनके पुर्नवास का। आपदाओं के बाद भी लोगों के पुनवार्स का काम होता है, जो दीर्घ कालीन है। ऐसे समय में समाजिक मदद के रूप में एनजीओ एक विकल्प के तौर पर सामने आते हैं। आपदा जितनी बड़ी होती है राहत कार्य की आवश्यकता उतनी ही बढ़ जाती है। कश्मीर में हमने लगातार दो महीने पीड़ितों की मदद की। सुनामी में मछुवारों को उनके रोजमर्रा के सामान देकर उनकी रोजगार में मदद की। संख्या में तेजी की बात है तो डोनर एजेन्सी, सरकार और आम लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। व्यवस्था को मजबूत और पारदर्शी होना होगा। मदद लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
 
क्या एनजीओ को मानवाधिकार से जोड़ कर देखा जा सकता है?
मनवाधिकार भी एनजीओ के कार्य का एक हिस्सा है। बच्चों को शिक्षा प्रदान करना भी उनका अधिकार है। उन्हें सिर्फ पकड़ कर पढ़ाने से ज्यादा जरूरी है उनके जीवन में सुधार करना ताकि वह फिर से गलत राह पर न जा सके। एक बच्चा अगर शिक्षित हो कर कामयाबी पाता है तो उसका पूरा परिवार आगे बढ़ता है। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी इसके अंर्तगत आती है। जैसे यदि किसी रोग का पता पहले लग जाए तो इलाज संभव है और उसका स्वस्थ होना मानवाधिकार है। जानकारी के अभाव में लोगों का जान जा रही है।
 
फंड की जरूरत सभी को होती है। लेकिन क्या इसका कोई दायरा होना चाहिए?
हां फंड का दायरा होना चाहिए और है भी। सरकारी तौर पर पंजीकरण से इसकी शुरूआत हो जाती है। जिसमें कानून के मापदंड पर खरा उतरने के बाद ही मान्यता मिलती है। फंड की जानकारी देने के साथ ही रिर्टन भी फाइल करना होता है। जिसमें तहकीकात होने के साथ करारनामा भी होता है। कार्य क्षमता के हिसाब से फंड दिया जाता है। जैसे यूनीसेफ को 50 हजार करोड़ मिला लेकिन हमारे यहां समस्याएं इतनी है कि सही काम करने पर यह फंड भी कम पड़ जाते हैं। फंड का इस्तेमाल जरूरत के अनुसार होना चाहिए।
 
एनजीओ के साथ सरकार का तालमेल कैसा है। खास तौर पर कुंडनकुल्लम मामले में?
कुछ संस्थाएं तो सरकार के साथ मिलकर काम करती है। जैसे डब्लूएचओ। अगर सरकार मदद ना करें तो हम कितनी जिम्मेदारी उठा सकते हैं। हम बच्चों को बेसिक शिक्षा देने के बाद उनका सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाते हैं। यहां सरकार के खिलाफ जाने का कोई मतलब नहीं है। दोनों को मिल कर काम करने में ही समाज का भला हो सकता है। सरकार हमने ही बनाया है। उन्हें देश के बारे में सोचने का पूरा अधिकार है। वो हमारी रक्षा के लिए अच्छा या बुरा कदम उठा सकती है। अपनी जगह पर सभी सही होते हैं। करीब 20 लाख एनजीओं में से सिर्फ कुछ के बारे में यदि कोई बयान आता है तो कोई कारण होगा। क्या गलत है क्या सही जनता भी जानती है। यह एक लोकतांत्रिक देश है।
 
एनजीओ के कारण बहुत से क्षेत्रों में सुधार भी हुए है और जागरूकता भी आई है। लेकिन क्या अब एनजीओ सिर्फ मुनाफे के लिए लिए खोले जा रहे हैं?
हमारा देश अभी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में हर चीज व्यवस्थित हो जाए यह संभव नहीं है। विकासशील देश में एनजीओ अच्छा काम करते हैं। तो यह सम्मान की बात होती है। एनजीओ खुद में रेगुलेट होना चाहिए। एनजीओ चलाने के साथ ही पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिए। जिसके अभाव में आज एनजीओ अपनी दिशा से भटक रहे हैं। पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। हम इसके खिलाफ है। मीडिया का भी बड़ा रोल हो सकता है इस संबंध में। लोगों को जागरूक करने में मदद कर सकती है। समाज के मदद के लिए सभी को आगे आना चाहिए। डोनर का पैसा गरीबों तक पहुंचना चाहिए। उदाहरण के तौर पर पोलियों हमारे देश से खत्म हो चुका है।
 
एक एनजीओ के तौर पर आपका देश के भविष्य के लिए क्या संदेश है?
एनजीओ को अलग से देखने की जरूरत नहीं है। यह समाज के लिए है हमारे समाज का ही एक हिस्सा है। साकारात्मक रूप में सबको साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। पढ़े लिखे लोगों को और अधिक रूचि लेनी चाहिए। सब कुछ छोडत्रकर काम करने की जगह कुछ समय निकाल कर भी समाज के लिए सार्थक काम किया जा सकता है। मानसिकता में भी बदलाव की खास जरूरत है। 

2 comments:

  1. एनजीओज़ के बारे में काफी विस्तृत जानकारी दी आपने... आभार!

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  2. Sushma Ji and MR. SANTANU MISHRA Ji, thanks to u both, it is very useful sharing and able to understand some important function of NGOs.
    thanks again...

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