Thursday, October 13, 2011

आगाज़

अंधे बाप के बेटों ने ये कैसा अनाचार किया |
लड़ न सके वीरों से तो नारी पर अत्याचार किया ||
भरी सभा में खीच कर लाया भाभी का अपमान किया |
चीर हरण करने की कोशिश बीच भरे दरबार किया ||
असहाय पड़े थे वीर योद्धा कहने को लाचार भीष्म |
औरों को क्या कहे जहा भीष्म पितामह तक हुए  लाचार ||
द्रौपदी न छोड़ी अपने प्रिय सखा को , जिसका साडी फाड़ उपचार किया |
क्रांत भावना से इस दुःख में पुकार-पुकार कर आह्लाप किया ||
दौड़ पड़े नंगे पग से अपनी बहन का सम्मान किया |
द्रौपदी की साड़ी को साड़ी ही नहीं अम्बर के सामान किया ||
खीच-खीच कर हारे थक कर जब चूर हुए |
भरी सभा में खड़े खड़े सब लज्जा से चकना चूर हुए ||
बची लाज श्यामा की जो प्रिय सखा को याद किया |
अपनों से ज्यादा जो श्रद्धा, विश्वास पर आधार मिला ||
खोल दिया अपने जुड़े को महाभारत का निर्माण किया |
कर प्रतिज्ञा पूरी विश्व को नया अभिमान दिया ||

by shitala ji

2 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति।

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  2. सार्थक भाव लिए कविता...

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