Saturday, October 8, 2011

बच्चों के सपनों को साकार करती संस्था


अशिक्षा एक ऐसा कारण है जो किसी भी देश के विकास में बाधा का काम करता है। यही वजह है कि माइक्रोसाफ्ट में कार्यरत ‘जाॅन वुड’ अपनी नौकरी छोड़ सबसे पहले 2002 में नेपाल के एक छोटे से गांव में ‘रूम टू रीड’ की नींव रखी। धीरे-धीरे यह सफर बढ़ता गया और आज दुनिया के 9 देशों में यह संस्था काम कर रही है। भारत में भी आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट, राजस्थान, उत्तरांचल और दिल्ली जैसे नौ राज्यों में इसका काम सरकार के साथ मिलकर कुशलता स ेचल रहा है। हालांकि भारत में इसकी शुरूआत 2003 में राजस्थान और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी बनने के साथ हुई। भारत में एक मिलियन बच्चों के साथ काम कर रही इस संस्था ने अभी तक 4,120 लाइब्रेरी बनवाई है और 7,86500 किताबों को सात भारतीय भाषाओं में प्रिंट करा कर बच्चों तक उपलब्ध कराया है। 2,882 लड़कियों को अपने प्रोग्राम से जोड़कर उन्हें शिक्षित और आत्म निर्भर बनानेे का प्रयास किया है। इस संस्था द्वारा मूल रूप से चार कार्यक्रम चलाए जाते हैं। पहला है ‘रीडिंग रूम’, दूसरा ‘लोकल लैग्वेज पब्लिसिंग’, तीसरा ‘स्कूल रूम’ और चैथा है ‘लड़कियों की शिक्षा’।

पूरे भारत में 76 कार्यकताओं के साथ काम कर रही इस संस्था की भारत मंे निदेशक सुनीशा आहुजा कहती है कि लड़कियों की शिक्षा के प्रोग्राम के तहत जब हम बिकानेर के तीन गांव में सर्वे किया। उसके बाद वहां बालिका शिविर लगाया। जिसमें लड़कियों की संख्या 72 से 48 हो गई थी। क्योंकि वह ऐसी लड़कियां थी जो कभी स्कूल गई ही नहीं थी। उनका परिवार और समुदाय उनकी पढ़ाई में सहयोग नहीं करता था। वहां हम आज भी काम कर रहे हैं। लेकिन शुरूआती दौर में ही हमे यह सीख मिली की हमें सिर्फ बच्चियों के पढ़ाई के स्तर पर ही नहीं उनके परिवारि और समुदाय केस्तर पर भी काम करना होगा। इसी का परिणाम है कि हम स्कार्लशिप देने के साथ ही उनके पूरे समुदाय के साथ जुड़ कर काम करते हैं। सबसे पहले हमने लाइब्रेरी का कार्यक्रम 2003-04 में 65 स्कूलों के साथ शुरू किया था। आज इनकी संख्या चार हजार से ज्यादा हो गई है। जहां विभिन्न प्रकाशकों से किताबे मंगवाने के अलावा खुद भी प्रकाशन किया जाता है। बच्चों की रुचि के अनुसार 100 नई कहानियों का प्रकाशन तीन भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी और तेलगु में किया गया है। इससे बच्चों के लिए लिखने वालों को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

इस संस्था की इस वर्ष के विदेशी फन्ड की बात करें। तो 75 प्रतिशत मदद विदेश का ही है। इस मामले में आहुजा जी मानती है कि किसी भी देश का कोई भी बच्चा अगर शिक्षित है तो इसका प्रभाव दुनिया पर होता है। मदद कहीं से भी मिल रही हो। जरूरी यह है कि हम मिल कर काम करें। जिससे सबका विकास हो सके। भारत में ही चार अन्य राज्य सरकार ‘रूम टू रीड’ को अपने प्रोग्राम में शामिल करने और 15-20 हजार स्कूलों में कार्यक्रम चलाने का प्रस्ताव दे रही है। उनमें झारखंड भी है। संस्था किसी भी राज्य में कार्य करते समय तीन साल का एग्रामेंट करवाती है। जिसके तहत सरकार को साथ मिलकर काम करना होता है। बच्चों को किताबें दिलाना, पुस्तकालय खुलवाना, शिक्षकों को प्रशिक्षण देना, बच्चों के विकास के लिए अन्य गतिविधियां करना मुख्य रूप से शामिल होता है। सरकार के साथ काम करने का कारण यही है कि जब संस्था वहां से काम पूरा कर ले उसके बाद स्कूलों को ज्यादा परेशानियों का सामना न करना हो।

इस वर्ष ही संस्था ने दो रिसर्च किए। जिसका उद्देश्य यह जानना था कि 12वीं की बाद लड़कियां अपने भविष्य के लिए क्या करना चाहती है। और इसके लिए उनकी तैयारी किस प्रकार कराई जा सकती है। कोई आगे पढ़ना चाहती है जो कुछ अपना काम शुरू करना, कुछ नौकरी करना चाहती है। ऐसे में पिछले साल ही छोटा सा पाइलेट प्रोजेक्ट 300 बच्चियों के साथ शुरू किया गया। उसमेें उनकी कार्य क्षमता को निखारने के अलावा उनकी मूल शिक्षा को ठोस बनाने का प्रयास भी किया जा रहा है। जिससे वह आगे जो भी करना चाहे कर सके। इसके लिए उन्हें स्कार्लशिप भी दिया जाता है। इसके चयन का आधार है। वह जगह जहां महिला शिक्षा दर राष्टीय महिला शिक्षा दर से कम हो और ऐसे स्कूल जहां अधिक संख्या में लड़कियों द्वारा पढ़ाई छोड़ दी गई हो। अब एक-एक बच्चे का चुनाव करने की जगह स्कार्लशिप के लिए उस पूरी कक्षा को ही चुन लिया जाता है।

अभी तक इस संस्था से लगभग 30-35 लड़कियां 12वीं पास कर चुकी है। उनमें से कुछ ने एनजीओ में ही काम कारना पसंद किया तो कुछ ने बीपीओ में और दो लड़कियां काॅलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है। देश-विदेश में कार्यात यह संस्था अपनी समाजिक कामों के लिए लगभग दस बड़े सम्मानों से नवाजी जा चुकी है।  

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