Wednesday, May 23, 2012

रंगमंच में "थिएटर आँफ रेलेवेंस"

रंगमंच को नया रूप देने की प्रयास की गाथा को संपादक संजीव निगम ने मंजुल भरद्वाज के "थिएटर आँफ रेलेवेंस" किताब के जरिये दुनिया के सामने लाया है | इस किताब में रंगमंच की पेचीदगी को सुलझाने के लिए कलाकार मंजुल से किये गए सवाल जवाब तो पढ़ने को मिलेंगे ही साथ ही थिएटर की इस नयी परिभाषा को व्यापक तौर से समझने का मौका भी | भारत जैसी पृष्ठभूमि में आज नाटकों की दशा बहुत अच्छी नहीं है | रंगमंच के परिवेश और दर्शकों के मन को भापते हुए जिस थिएटर का अनुकरण हुआ, उसी सोच को अब पाठकों तक पहुँचाने की मुहिम इस किताब में दिख रही है | मरती हुई प्रतिभा को जगाने के साथ ही 50 ,000 बच्चो को स्कूल की रह इस थिएटर ने दिखाई | किताब की शुरुआत तो काफी पहले ही हो गई थी लेकिन इसके आने में समय लगा | 90 के दशक से प्रारंभ इस अभियान की मर्म कहानी भी यहाँ जानने को मिलेगी किस प्रकार थिएटर आँफ रेलेवेंस की स्थापना हुई और आज किस मुकाम तक जा चुकी है | यह सच है की नाटक हमारे देश काल वातावरण के अनुसार हो तो उसका प्रभाव आम जनता पर ज्यादा होगा | इसके लिए देश में ऐसी प्रतिभावों को तलाश कर उन्हें सामने लाना चाहिये | जो नाट्यकला को सिर्फ जीवित ही न रखे अपितु उसे महान कला बनाये | इसी प्रयास के तौर पर आई इस किताब में थिएटर का नया रंग किस तरह से सबसे अलग है यह पढ़ कर ही निर्णय किया जा सकता है |

सुषमा सिंह

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