Friday, March 23, 2012

रेड लाइट एरिया का सच


सुषमा सिंह/ वाराणसी

गुड़ियां-गुड़ों के खेल के बारे में तो सभी को पता होगा ही। जब वह हमारे लिए बेकार हो जाते हैं या अच्छे नहीं दिखते तो हम दूसरे ले आते हैं या उन्हें बेकार समझ फेक देते हैं। अगर असल जिंदगी के साथ भी ऐसा होने लगे, तो क्या होगा? लेकिन होता है ऐसा भी। वाराणसी में अजीत सिंह इन्सान को इस खेल से सावधान करने की कोशिश का नाम गुड़िया है। 1991 में एक बच्चे को गोद लेने के साथ ही अजीत की लड़ाई समाज में फैली बुराईयों के खिलाफ प्रारंभ हो गई थी लेकिन संस्था के तौर पर गुड़िया का पंजीकरण 1993 में हुआ। यहां  लड़कियों से जुड़ी हर उस समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है जिससे इनकी जिंदगी के दर्द कम हो सके। शिवदासपुर बनारस का वो इलाका है जिसे रेड लाइट क्षेत्र का नाम दिया गया है। इन्हें अपने हितों के लिए लोगों ने 70 के दशक में दाल मंडी से शहर के बाहरी इलाके में भेज दिया गया। यहां सिर्फ औरते ही नहीं इनकी छोटी बच्चियां भी देह व्यापार के काम में लगी हुई थी। इसके लिए उनकी रजामंदी की भी जरूरत नहीं होती है। 300-400 की आबादी वाला यह क्षेत्र अब सुधार की प्रक्रिया में हैं।

 अभी कुछ दिनों पहले ही एक रिपोर्ट आई है भारत में हर घंटे 11 बच्चे गायब हो रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है? इस मामले में अजीत जी का साफ कहना है कि जब बात बड़े शहरों की होती है तो फलक जैसे लोग सामने आते हैं। छोटे शहरों का क्या जहां रोज कई फलक मिलती है। यू.पी. राज्य काफी अन्य राज्यों से जुड़ा हुआ है इस वजह से बच्चों की तस्करी को आसानी से अंजाम दिया जाता है। अगर वाराणसी की है तो यह बहुसांस्कृतिक शहर है। इस वजह से किसी को सदेंह भी नहीं होता है कि दूसरे क्षेत्र के लोग यहां कर क्या रहे हैं। दूसरा बड़ी ही असानी से बच्चों को यहां से कहीं भी किसी भी मार्ग से पहंुचाया जा सकता है कारण है यातायात की सुविधा। केवल भारत ही नहीं इससे जुड़े बार्डर के अन्य देशों में भी इनकी तस्करी की जाती है। कुछ साल पहले का नीठारी कांड हो या 90 के दशक में बच्चों के अधिक संख्यां में गायब होने की खबर, दक्षिण में शेखों के बच्चियों के साथ निकाह के बाद तलाक की खबर और  मुंबई से गायब बच्चों के बरामद होने की खबरे आती रहती है। आखिर यह बच्चे खोने के बाद मिलते क्यों नहीं? यह भी एक वजह है जिससे हम कह सकते हैं कि खोया हुआ कोई भी बच्चा तस्करी का शिकार हो सकता है। सोचने वाली बात यह भी है कि केवल गरीबों के बच्चों को ही अधिकांश तौर पर निशाना क्यों बनाया जाता है? क्या लड़के लड़कियों में भेद भाव भी एक वजह है जिसका हरजाना अकसर लड़कियों को भरना पड़ता है। बच्चों की तस्करी कई कारणों से की जाती है जैसे बाल श्रम, सेक्स, पलायन, अंग व्यापार और शादी आदि के लिए। गुड़िया की बात करें तो यह वाराणसी, मऊ, गाजीपुर, चंदौली और आजमगढ़ क्षेत्रों में तस्करी और वेश्यावृत्ति के खिलाफ मुहिम है। एक बात यह भी है कि अगर औरते अपनी इच्छा से इस दलदल से नहीं निकलना चाहती तो हम उन्हें जबरजस्ती नहीं कहेंगे फिर भी मदद के लिए हमेशा तैयार है। लेकिन बच्चों को बचाना जरूरी है क्योंकि इसकी रजामंदी कानून में भी नहीं है। हांलही के एक केश में अपारधी को बचाने के लिए 12 साल की लड़की को कोर्ट पहुंचने से पहले ही अगवा कर लिया गया। हमारे प्रयास से वह अब उनके चंगुल से बाहर है। अफसोस इस बात का है कि यह लड़ाई सिर्फ एक से नहीं बल्कि उस पूरे गैंग से हैं। जो अपने स्वार्थ में अंधा हो कर बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।

 शिवदासपुर में करीब 120 और मऊ में 70 बच्चों को यह संस्था शिक्षित कर रही है। कानूनी तौर पर भी 186 केस और 586 अभियुक्त दोषी केस है। जिसे हमारे वकील गोपाल कृष्णा और तनवीर अहमद देखते हैं। इन्हें सिर्फ इस दलदल से बचाते ही नहीं है बल्कि कुछ आर्थिक मदद देने के साथ ही इन्हें प्रेरित करते है कि ये अपना भविष्य बना सके। कुछ रोजगार से भी जुड़ सके। वाराणसी के ही मानसरोवर घाट किनारे खुले आसमान के नीचे एक नांव पर इन्हीं गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल बनाया गया है। जिसकी खासियत उसका सोलर पैनल से चलने वाला कंप्यूटर और लाइटिंग व्यवस्था है। इसी स्कूल तीसरी कक्षा में पढ़ रही पीहू कहती है मैं पैसों की तंगी के कारण अपने स्कूल नहीं जा पा रही थी लेकिन यहां रोज आती थी अब फिर से मैं वहां भी जा सकूंगी। टॉम और आजा विदेशी जरूर है लेकिन गुड़िया के साथ काम करना उन्हें दिल से अच्छा लगता है। अजीत की हमसफर मंजू भी इस पूरे मुहिम में हर कदम उनके साथ होती है। यहां तो हम यही मानते हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और नेक काम में काफी अड़चने भी आती है। हमें भी कानूनी और सामाजिक दोनों तरह से बाधांओ का सामना करना होता है और तीसरी बांधा है बच्चों की तस्करी में जुटे दलाल। इसलिए एक मॉडल बानाने का प्रयास होना चाहिए। शोषण तो किसी भी तरह से सही नहीं होता है, इसके खिलाफ आवाज बुलंद होनी ही चाहिए। आज हमने उस इलाके में स्कूल खोला है जहां रेड लाइट एरिया है आस-पास के 8 मकान भी सीज किए गए। ताकि बच्चों को परेशानी न हो, उन्हें उनकी अपनी उस जिंदगी से परिचित कराया जिसमें वह महफुज हो। उन्हें किताबी ज्ञान तक ही सिमित नहीं रखते। पेंटिंग, आर्ट एंड क्राफ्ट, मेडिटेशन आदि भी कराते हैं। इन सब कामों मंे किसी से सहायता की उम्मीद करना अपने आप से बेमानी है। जिस इलाके की तरफ लोग देखना पंसद नहीं करते थे आज वहां साकारात्मक बदलाव देख उनकी जुबा भी कहती है- यह होता है नेकी करने का जज्बा।

(वाराणसी में लड़कियों की तस्करी और वेश्यावृत्ति के खिलाफ काम कर रही संस्था गुड़िया के अध्यक्ष अजीत सिंह से हुई बातचीत)

1 comment:

  1. Ajit singh Sir,
    Proud of you and want to help you in your really massive action. Some steps are also required for the road teasing by anti-social, irresponsible and misguided youths. Because it may gives very acute mental pressure to innocent girls.
    Thanks to sushma ji for sharing this very sensitive issue…

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