Tuesday, June 21, 2011

तीन पहिये का साथ


हम रिक्शे पर सवार होकर अपनी मंजिल तक तो पहुंच जाते हैं | लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि इन रिक्शे वालो की जिंदगी कैसे चलती है| पैसो और छोटी-छोटी बातों को लेकर आये दिन उनसे झड़पे होते तो हम रोज ही देखते हैं | उसी बीच दिन भर की मेहनत के बाद भी उन पर पुलिस के डंडे बरसते  भी देखा जाता है| इनके परिवार का जीवन कैसे चलता है, अगर यह बीमार हो जाये तो उस दिन क्या होगा?
इन सब के बारे में भी सोचने की जरुरत है| नोएडा में  एक रिक्शे वाले को बेवजह कुछ गुर्गो द्वारा परेसान किये जाने की घटना को देखकर केरल की रहने वाली 67 वर्ष की सिस्टर सेलीन ने उनकी मदद करने की ठानी जो 1965 में ही नून बन गई थी| अपने रिटायरमेंट के बाद जब वह वापस भेल स्कूल में प्राइमरी की  इंचार्ज बनी कर आई , तब 4 अक्टूबर 2005 को उन्होंने पहली बार लाटरी माध्यम से जरुरत मंदों को रिक्शा देना शुरू किया | जिसकी कीमत रिक्शेवाले पहले तीन माह में 50 रुपये देकर फिर धीरे-धीरे साल भर में पूरा बकाया अदा कर उसे अपना बना लेते हैं| सिस्टर का कहना है कि ऐसा करने से उन सब को यह नहीं लगेगा कि यह रिक्शा उनका नहीं है| इन रिक्शो कि गिनती आज ३०३ तक पहुंच गई है, जिनमें से 277 से ज्यादा रिक्शे वालो ने पैसे दे दिए हैं| सिस्टर के पास रिक्शे के पैसे किसी फंड या डोनेसन से नहीं आते हैं| यह नेक काम वह खुद और अपने सहयोगियों कि मदद से करती है| शुरूआत में कुछ पब्लिसर्स ने भी उन्हें मदद किया| सिस्टर का मानना है कि ऐसा करने से वह अपने लक्ष्य से भटकेंगी नहीं| ऐसे ही सामाजिक कामों से उन्हें इनाम के रूप में करीब ढाई लाख रुपये मिले, जिसे उन्होंने रिक्शे खरीदने के साथ उनके परिवार कि मदद में भी लगा दिए| सिस्टर को अपने जन्म दिन के तोफे के रूप में अरविन्द यादव जी से रिक्शा मिला और मंगलवार के दिन यह पहला रिक्शा किसी कि मदद के लिए दिया गया| यही कारण है कि हर महीने कि मीटिंग मंगलवार को एक टी पार्टी कि तरह राखी जाती है| जहां इन्हें ट्रेफिक रूल्स के साथ ही अच्चा इंसान बनाने कि सीख दी जाती है| बैंको में इनके अकाउंट खुलवा दिए जाते हैं| इससे आगे  बचत करने के साथ ही अपने मुश्किल दिनों के लिए जमा पूंजी इक्कठा कर पाते हैं| यहां पर इन्हें एक-दुसरे कि मदद करना भी बताया जाता है | रिक्शा वालो के साथ ही उनके परिवार का ध्यान भी सिस्टर रखती है | उनके बच्चो को भी पढ़ाती है | सुरेश नामक बुंदेलखंड वासी रिक्शा वाला कहता है कि सिस्टर कि मदद से आज यह रिक्शा हमारा है| वह हमें बताती है कि किसी के साथ भी बुरा व्यवहार मत करना| वह हमारे परिवार का भी ख्याल रखती है| अपना पैसा अब हम अकाउंट में जमा करते हैं| 
इसके अलावा सिस्टर ने तिहाड़ जेल में बंद कैदियों के 29 बच्चों को 1997 में 'आशा सदन' लायी, जहां इनके द्वारा ऐसे बच्चों को शरण दिया जाता है| नोएडा लाने का उद्देश्य उन्हें अच्छी शिक्षा और परवरिश देना है | सिस्टर का सपना उन्हें आत्म निर्भर और नेक इंसान बनाने का है |  यह वो बच्चे है जिनके मां-बाप किसी अपराध के कारन जेल में बंद है| इनके परवरिश कि पूरी जिम्मेदारी आशा सदन पर है | बाद में इन्हें आगे कि शिक्षा के लिए पहली आइपीएस महिला अधिकारी किरण बेदी कि संस्था 'इंडियन विसन फाउन्डेसन' भेज दिया जाता है | 
सिस्टर कहती है कि मुझे मदद करने कि प्रेरणा केरल में ही फादर वर्गीश से मिली| उन्हें सामाजिक कार्य के लिए नवरत्न अवार्ड से भी नवाज़ा गया और १०१ वोमेन बुक में भी उनका नाम शामिल किया गया| सिस्टर बताती है कि यह सब इतना आसान नहीं होता है| पहले तो रिक्शे वाले इस काम में रूचि नहीं ले रहे थे | अब तो संख्या बढ़ती जा रही है | पहले सेक्टर 17 फिर 33 और अब तो नजीबाबाद में भी रिक्शा देने कि यह कवायद शुरू हो गई है| अभी नजीबाबाद में 55 हज़ार रुपये इस मुहीम को शुरू करने के लिए दिए गए है | उन्होंने बताया कि मीडिया में खबर आने के बाद तीन रिक्शे के पैसे मदद के रूप में आ गए | अलग-अलग लोग हर बार मीटिंग और खाने कि व्यवस्था के लिया आगे आते रहते हैं | क्रिसमस भी सिस्टर इन्हीं लोगो के साथ मानती है| किसी अमुक ने उनपर रिक्शेवालों को क्रिसचन बनाने का आरोप लगाया| लेकिन सच को नहीं झूठ्लाया जा सकता है| एक भी ऐसा रिक्शे वाला नहीं मिला जिसने धर्म परिवर्तन किया हो| सिस्टर कहती है कि समाज सेवा का काम तो सरकार का है | अगर हम कर रहे है तो क्या गलत है| जो लोग किसी के लिए अच्छा नहीं कर सकते है तो चुप रहे, जो अच्छा काम कर रहे है उन्हें करने दे | यहां कोई भी मेरा नहीं है लेकिन सब अपने है| मैं तो इन सब को अच्छा इंसान बनाने कि कोशिश कर रही हूँ | यह जिम्मेदारी समाज कि भी बनती है कि वह रिक्शेवालो से ठीक से पेश आये|

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