Thursday, September 30, 2010

हिंदी और हम




हिंदी एक भाषा नहीं अपितु मानव की आत्मा है फिर भी हम हिंदी को छोड़कर अंग्रेजीयत की तरफ रुख किये हुये है । सारी दुनिया हमारी भाषा हिंदी और संस्कृति की तरफ आशा की दृष्टी से देख रही है और हम अंग्रेजी को निहार रहे हैं ।
अब आइये हम देखे कि हिंदी एवं अंग्रेजी का क्या हमारे आम जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है ।
हम अपने जन्मदाता को हिंदी में पिताजी , बाबूजी एवं वही अंग्रेजी में डैड, डैडी बोलते है । अब सोचिये पिताजी कहने में हमारी आत्मा को जो जीवन्तता, सम्मान का बोध होता है, पालने वाले का आभास होता है वही डैड से निराशा एवं दण्डित होने का ।
अब अपनी जीवन देने वाली को हम सब माताजी, माँ जैसे शब्द से आत्मसात करते है जिससे हमारे ममतामई माँ का आचल सदा रक्षा करने के लिए हमारे सिर पर छत्र बनकर छाया रहता है वही अंग्रेजी में मोम, मम्मी जैसे शब्द से एक निर्जीव का बोध होता है।
अब रिश्तेदारों कि देखिये हिंदी में हम अपने संबंधियों को अलग जैसे चाचा, नानी, बुआ, फूफा इत्यादि मनमोहक एवं आत्मीय नमो से पुकारते है जिससे हमें प्यार दुलार और शुभाशिव्दी प्राप्त होता है। वही अंग्रेजी में हम सबको अंकल एवं आंटी बस इसी से पुकारते है जिससे हमें केवल एक संबोधन होता है लेकिन वह प्यार दुलार हमें नहीं प्राप्त होता। पद का पहचान बिना पूछे नहीं हो पता।
अब हम सब मिल कर गौर करे कि हम किस भाषा को आत्मसात करे और क्यों ?
सबका एक ही उत्तर होगा, वह होगा -
'हिंदी'
ए सब बाते तो हुई रिश्तो कि अब सामायिक शब्दों पर ध्यान दे।
जैसे - समय


हिंदी में हम समय, काल इत्यादि नामो से बोलते है तो हम जीवन के साथ हर वक्त का एहसास करते है, कहते है कि समय सबसे बलवान है, काल चक्र कभी रुकता ही नहीं, काल चिंतन ही हमें आशावादी एवं उत्साहहिन करता है। कल क्या था, आज क्या है, कल क्या होगा, वह सब समय ही बताता है और वही अंग्रेजी शब्द टाइम को ले लीजिये। क्या आप बोलते है कि टाइम बलवान है नहीं टाइम (rotation) अस्थिर है नहीं तब हम हिंदी में ही सार्भोमिकता को पाते है
अब मौसम के बारे में चिंतन करे तो वह भी हिंदी प्रकृति के साथ नज़र आती है जैसे रिमझिम बारिस हो रही है, बूंदाबादी हो रही है, हल्की फुहार पड़ रही है, तेज बारिस हो रही है, मुसलाधार बारिस हो रही है। इन शब्दों को सोच कर मन प्रफुलित और रोमांचित हो जाता है जबकि हम अंग्रेजी में रेन या रेनफाल से सहम जाते है।


ठंडी में हम हल्की ठंडी, गुलाबी ठंडी, सामान्य ठंडी, तेज ठंडी, कडकडाती ठंडी आदि से हमें उस ठंडी का आभास हो जाता है जबकि अंग्रेजी शब्द में ऐसा नहीं है
अतः हमारा मानना एवं सोचना है कि हम आत्मसात करने वाली अपनी निज भाषा, राष्ट्र भाषा का ही उपयोग करे
जय हिंदी, जय हिंद


2 comments:

  1. english language globlization ke dour me aur bhagdour me kam time me adhik se adhik kaam karna pasand karte hai. jisse hindi bhasha duruh bhasha hone ke wajah se use log bolna ya likhna pasand nahi karte aur hindi bhasha ko log bharat me hi samajh ya bol sakte hai lekin english bhasha ko pure vishwa me bol ya samajh sakte hai. yah bidmbna hai ki bharat hindi ka janmdatta hota hue bhi yaha isse rastra ki jagah raj bhash aka darja diya gaya hai.........

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