गांव के लोगों से बातचीत करके एक और बात सामने आई कि यहां धार्मिक तौर भी भ्रूण हत्या को पाप माना जाता है। यह भी एक कारण है कि बेटियों को मार कर लोग पाप के भागीदारी नहीं बनना चाहते। सुमन एक गृहणी है, उनका कहना है कि लड़कियों को आत्म निर्भर बनना चाहिए। सुषमा भी एक गृहणी है जो मानती है कि उनका गांव सबके लिए मिसाल है, उनके यहां भूण हत्या नहीं होता। लड़कियों को पढ़ने, आगे बढ़ने का पूरा मौका दिया जाता है। सुमन एमबीए कर रही है, इनके परिवार में ये तीन बहन और एक भाई है। ऐसा ही आकड़ा अधिकांश इस गांव के हर घर में देखने को मिलेगा। इनका कहना है कि पढ़ना ज्यादा जरूरी है। नौकरी करना न करना तो हम पर निर्भर है। गांव की लड़कियां खेल में भी काफी आगे हैं। और फुटबाल इनका पसंदीदा खेल है। राज्य स्तर पर भी लड़कियां कैप्टन रहते हुए कई खिताब अपने नाम कर चुकी है। हाल में ही रूबी को खेल कोटे से ही पुलिस में नौकरी मिली और बीना नरवाल को लेफटीनेन्ट पद। सीमा एमएसी और बीएड की हुई है पढ़ाती है। उनके अनुसार लड़कियो को हर क्षेत्र में आगे जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमारे गांव से लड़कियां विदेश भी जाकर नौकरी कर रही है। लेकिन गांव में भी और तरक्की की आवश्यकता है।
गांव के सरपंच संदीप सिंह नरवाल का कहना है कि गांव के यह आकड़े लड़कियों की संख्या में अचानक इतना गिरावट दिखा रहे हैं तो यह संभव ही नहीं है इसलिए फिर से इन्हें दुरूस्त करने की जरूरत है। यह तो पूरा गांव जानता है कि यहां लड़कियों की संख्या अधिक हैं। गांव की एक समस्या यह है कि यहां स्टेडियम की मांग खेल कूद को प्रोत्साहन देने के लिए रखी गई। जो पूरी नहीं हो रही। गांव की समस्या तो और भी है जैसे पानी निकासी, मनरेगा। सबसे बड़ी बात यह कि यहां स्वास्थ्य केंद्र के नाम पर कुछ भी नहीं है। नाम का एक मिनी केंद्र है। इस गांव में स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत है। करनाल ज्यादा दूर नहीं है फिर भी गांव में प्राथमिक चिकित्सा का अभाव खलता है। इस गांव को मुख्यमंत्री सौंदर्यी करण योजना के तहत जिले में दूसरा स्थान मिला और पढ़ाई में प्राइमरी स्कूल को पहला। एक बिना पढ़े-लिखे इस गांव के बलबीर सिंह नरवाल की बेटी ने बीएससी में कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी में टॉप किया। गांव के विकास के लिए मिली धनराशि को रैली, पोस्टर कैंप में प्रयोग कर जागरूकता लाने की कोशिश भी की जाती है। गांव की साफ सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। केमिनोवा की तरफ से डॉक्टरों की टीम ने स्कूल में स्वास्थ्य जांच कर बच्चों में प्रोटीन बांटने का काम भी किया। खेडी नारूह गांव बसने का अपना इतिहास है लेकिन आज जिस तरह लिंगानुपात में गिरावट आ रही है। खास तौर से शहरों में इसका सीधा संबंध आधुनिक जांच तकनीक से जूड़ता है। ऐसे में खेड़ी जैसा एक भी गाँव अंधेरे में दिया जलाने का काम कर रहा है। गांवके लोगों की सोच है कि लड़कियां पढ़ेगी, बढ़गी तो एक नहीं बल्कि दो घरों को सवारेंगी।
सुषमा सिंह
काश ऐसी सोच और भावना भारत के हर गाँव की हो जाए!
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना...
सुन्दर...सकारात्मक..शानदार..ये तो दिल्ली का मोहल्ला लगता है. काश ऐसा संपन्न दिल्ली का हर गाँव होता...अच्छी स्टोरी...शुभ कामना.
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