कृषि प्रधान भारत की अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत से अधिक आबादी खेती-किसानी पर ही निर्भर रहती है। भारत की इससे दयनीय स्थिति और क्या हो सकती है कि एक तरफ गरीबों के खाने के लिए अनाज नहीं है तो दूसरी तरफ लाखों टन अनाज सरकार की ढीलाई और गोदामों में हो रही लापरवाही की वजह से खराब हो जा रहे हैं। इतना अनाज बर्बाद हो रहा है जितना अगर गरीबों में बांट दिया जा, तो वो सालों खा सकते हैं। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) भारत सरकार की खाद्य भंडारण ईकाई है जो 14 जनवरी 1965 को कार्पोरेशन एक्ट1964 के तहत अनाज कृषि प्रधान भारत की अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत से अधिक आबादी खेती-किसानी पर ही निर्भर रहती है। भारत की इससे दयनीय स्थिति और क्या हो सकती है कि एक तरफ गरीबों के खाने के लिए अनाज नहीं है तो दूसरी तरफ लाखों टन अनाज सरकार की ढीलाई और गोदामों में हो रही लापरवाही की वजह से खराब हो जा रहे हैं। इतना अनाज बर्बाद हो रहा है जितना अगर गरीबों में बांट दिया जाए तो वो सालों खा सकते हैं। भारतीय खाद्य निगम (एफफसीआई) भारत सरकार की खाद्य भण्डारण ईकाई है जो 14 जनवरी 1965 को कार्पोरेशन एक्ट 1964 के तहत अनाज भण्डारण, देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्यान्नों का भण्डारण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों के लिए प्रभावी समर्थन मूल्य की व्यवस्था करने के लिए स्थापित की गई। मुख्यालय नई दिल्ली और पांच वर्षीय कार्यालय है। सरकार इसमें हर साल कुल उत्पादन का करीब 15 से 20 प्रतिशत गेंहू और कुल चावल उत्पादन का 12 से 15 प्रतिशत खरीदती है। एफफसीआई अखिल भारतीय स्तर पर डिपुओं के जरिये खाद्यान्न भण्डारण करता है। इसमें क्रेप भण्डारण भी शामिल है। डनेज का प्रयोग और पोलीथीन कवर आदि के जरिये खुले में भण्डारण किया जाता है। अखिल भारतीय स्तर पर करीब 1451 गोदाम है। केन्द्र सरकार भारतीय खाद्य निगम और राज्य एजेंसियों के जरिये धान मोटे अनाजों और गेंहू को समर्थन मूल्य पर खरीदा करती है। इसके अलावा उत्पादकों के पास यह भी विकल्प होता है कि वे राज्य के किसी भी एजेंसियों और खुले बाजार में जहां भी चाहे अनाज को बेच सकते हैं।
देश के कई राज्यों में अनाज भण्डारण का बुरा हाल है। बिहार में वर्तमान हालत यह है पिछले साल 31 जुलाई 2011, केंद्रीय पूल के लिए राज्य की चार एजेंसियों के माध्यम से खरीदा गया 83 हजार टन गेहूं 31 मार्च 2012 तक एफफसीआइ के गोदामों में पहुंचा ही नहीं, न ही उसका कोई हिसाब-किताब है। बिहार सरकार से गुम हुए गेहूं की तलाश करवा रही है तो एफफसीआई के अफसर पड़ताल में लग गए है। जबकि यह एफफसीआइ के दस्तावेजों में यह दर्ज है।
बीकानेर मंडी की स्थिति यह है कि वहां लगभग दो लाख बारदाने की जरूरत है। मंडी परिसर में दो दिन की खरीद के बाद भी 75 हजार क्विंटल गेहूं खरीद के लिए बचे रहे। किसानों की आशाओं पर बारीस ने पहले भी तीन बार पानी फेर दिया है। सरकार ने खाजूवाला मंडी को एक लाख 15 हजार बारदाना व बीकानेर मंडी को केवल 50 हजार बारदाना उपलब्ध करवाया। यह किस आधार पर किया गया इसका कोई जवाब नहीं है। भामाशाह मंडी में बेमौसम बारिश व अव्यवस्थाओं के चलते भीगने से काफी गेहूं खराब हो गया हैं। खराब गेहूं की तुलाई तो हुई नहीं जिसका खामियाजा किसानों को करीब 30 लाख रुपये के नुकसान के रूप में उठाना पड़ा, इसकी भरपाई के लिए किसी के पास कोई विकल्प नहीं है। एफफसीआई ने ऐसे गेहूं को साफ तौर पर लेने से मना कर दिया। अब किसान भी क्या करें। बूंदी जिले के रोटेदा गोराम मंदी में सोलह दिन बाद गेहूं की तुलाई हुई। एफफसीआई ने करीब 12 बोरी भीगा हुआ गेहूं जिसमें ढेले बंध गए थे, बैरन लौटा दिया। 26 मई नरसिंहगढ़ तहसील के गोराम मंडावर में स्थित खरीदी केंद्र पर दो परिधि में गेहूं तुलाई के विवाद पर एक युवक की गोली लगने से मौत भी हो गई।
अमृतसर, पंजाब के कई इलाकों में गेहूं और चावल पिछले सालों से पड़े-पड़े सड़ चुके हैं, उन गाँव में अब बीमारियों का खतरा मडराने लगा है। इतना ही नहीं इन सड़े हुए अनाज को न हटाने के कारण से गोदामों में भी भण्डारण की समस्या उत्पन्न हो गई है। मानसून के शुरू होते ही यहां 232 लाख टन गेहूं आ जायेंगे जिसके रखने के लि, जगह नहीं बची है। नेशनल हाइवे के पास ही लगे इस सरकारी गोदाम में चावल की बोरियों के कई कई फीट ऊंचे ढेर लगे हुए हैं जो अब किसी काम में नहीं आ सकते हैं।
मध्यप्रदेश के गेहूं खरीद केंद्रों पर इस सीजन में गेहूं समर्थन मूल्य तथा उस पर राज्य सरकार का बोनस देकर खरीदा गया। खरीदे गए गेहूं में से लगभग 90 प्रतिशत का सुरक्षित भण्डारण भी राज्य सरकार कर चुकी है। सरकार ने किसानों से समर्थन मूल्य पर जो गेहूं खरीदा उसका मूल्य 9,572 करोड़ रुपये है। राज्य सरकार ने उसकी गेहूं फसल की खरीदी के लिए व्यापक इंतजाम किये हैं।
वही उ-प्र- में गेहूं क्रय केन्द्रों पर मनमानी की हद हो गई। बिचैलिये जमकर मुनाफा कमाने में जुटे हैं। एक किसान के नाम से कई चेक जारी किये गए हैं। बोरियों को कमी से भण्डारण खुले में किया जा रहा है। जहां प्रभारी का स्थानांतर हो गया, वहां क्रय केन्द्र को ही बंद कर दिया गया है। गेहूं क्रय केन्द्रों से लगातार आ रहीं शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए उन्नाव के कई गेहूं क्रय केंद्रों पर आकस्मिक छापा मारा गया । निरिक्षण में बड़े पैमाने पर खामियां तो मिलीं और फतेहपुर में मंडी के जाने पर कर्मचारी व अधिकारी ताला डालकर भाग गए।
एफफसीआई की अनाज भण्डारण प्रणाली की खामियों के बारे में जब अदालत और सामाजिक संगठनो द्वारा आपत्तियां दर्ज की जाती हैं तो वह गोदामों की कमी का रोना रोते हुए अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन सच्चाई वह नहीं है जो दिखाई जा रही है, उसके कई गोदामों में अनाज की जगह शराब का भण्डारण किया जा रहा है, क्योंकि वह जगह किसी और को किराये पर दे रखी है। एफसीआई में भ्रष्टाचार का आलम छाया हुआ है और दूसरी ओर केंद्र सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने की तैयारी में है। इसके अलावा कीमतों को नियंत्रित करने के लिए खुला बाजार बिक्री योजना (ओ एम् एस एस ) के जरिये बाजार में गेहूं की बिक्री करती है। गेहूं और चावल का देशों को निर्यात भी एफसीआई के भंडारों से ही होता है। मोटे अनाजों की बिक्री खुले बाजार में निविदा के जरिये होती है। यहां भी जमकर धांधली होती है। ऐसे में सिर्फ गरीब को दोष देना कहां तक सही है। पारंपरिक तौर पर जिस तरह अनाजों का भण्डारण घर के भीतर ही किया जाता था क्या उस उपाय को यहां लागू नहीं किया जा सकता है। अनाज को सड़ाने की जगह भूख मिटाने के लिए नहीं इस्तेमाल किया जा सकता है। एफसीआई के मुताबिक अगले महीने की शुरुआत में सिर्फ पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश में उसके पास 476 लाख टन अनाज आ चुका होगा। इसमें से 232 लाख टन गेहूं रखने के लिए जगह नहीं है।
एफसीआई के गोदामों में अनाज भण्डारण की पर्याप्त क्षमता होने के बावजूद भी काफी मंडी में अनाज यहां-वहां सड़ जा रहे हैं । कारण साफ है जिसके बीच सरकार खुद आने से बचती है। बिचैलियों के माध्यम से प्राइवेट गोदाम और वेयर हाउस किरा, पर ले रहे हैं । जिसके लिए अफसरों को जबरजस्त कमीशन भी मिलता है। फिर क्या होना है सड़ा हुआ अनाज कौडि़यों के मोल शराब उत्पादकों को बेच दिया जाता है वहां से भी अच्छी आमदनी हो जाती है। कुछ साल पहले विशेष जरूरत पड़ने पर 1 रुपये 20 पैसे प्रति स्क्वायर फीट की दर से प्राइवेट गोदाम किराये पर लिए जाते थे, वहीं अब सेंट्रल वेयर हाउसिंग कारपोरेशन और स्टेट वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के जरिये 3 रुपये प्रति स्क्वायर फीट की दर से गोदाम किराये पर लिए जा रहे हैं। सोचने वाली बात यह है कि एफसीआई अपने गोदाम दूसरों को किराये पर दे रहा है जबकि उसमें आये अनाजों का भण्डारण बाहर करना पड़ रहा है। अगर भारत सरकार ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सुझाव पर अमल किया तो अगले कुछ महीनों बाद 72 प्रतिशत जनता को 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गेहूं और 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से चावल मिल सकता है लेकिन यह बात हकीकत हो इसकी कोई गारंटी नहीं है। पिछले कुछ सालों में खपत की तुलना में भारी स्टाक जमा होने के कारण भी अब गोदामों में जगह नहीं बची रही है। कोल्ड स्टोरेज का अभाव, गोदामों का दूसरे कामों में उपयोग और उचित प्रबंधन न होने से भी अनाज सड़ रहा है। जबकि सरकार निजी क्षेत्र की भागीदारी से अनाज का भण्डारण करने की बात कह रही है। कोल्ड स्टोरेज के संबंध में उसने एक योजना विजन-2015 तैयार की है, जिसके तहत गोदामों में अनाज के संरक्षण की जिम्मेदारी इंडियन ग्रेन स्टोरेज मैनेजमेंट और रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईजीएमआरआई) को सौंपी गई है। एजेंसियों का कहना है कि एफसीआई गेहूं का भुगतान करने में काफी विलंब करती रही है, ऐसे में उनके पास गेहूं खरीद के बजट का एक बड़ा हिस्सा फंस गया है और वे काश्तकारों का भी पेमेंट नहीं कर पा रही हैं। आरएफसी को छोड़कर बाकी सभी सरकारी एजेंसियों को शुरूआत में ही क्षेत्रीय कार्यालय स्तर से बजट जारी किया जाता है। उसी समय वे काश्तकारों का गेहूं खरीदती हैं। इसके बाद किसानों से खरीदे गए गेहूं की एफसीआई को डिलीवरी देने के बाद भुगतान एजेंसियों के पास पहुंच जाता है। यह चक्र चलता रहे, तो एजेंसियों के पास बजट बरकरार रहता है। जबकि एफसीआई के पास एजेंसियों ने जो गेहूं भेजा है, उसका करीब 50 फीसदी भुगतान अभी तक नहीं हो सका है, जिसकी कीमत करीब ढाई करोड़ हैं। गेहूं का पेमेंट न मिलने से इनके सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया है। अगले 18 महीने में खाद्यान्न के भण्डारण की समस्या का आंशिक समाधान होने की संभावना है जताई जा रही है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 10 वर्षीय गारंटी योजना के तहत 80 लाख टन क्षमता के नए गोदामों के निर्माण कार्य को पास कर दिया है। एफसीआई के पास इस समय 130 लाख टन अनाज भण्डारण की क्षमता है जबकि उसने 150 लाख टन से ज्यादा क्षमता वाले गोदाम सरकार और निजी एजेंसियों से किराये पर ले रखे हैं। इसके पास ढंके हुए और खंभे वाले गोदाम हैं और इसकी क्षमता 26 .2 लाख टन है जबकि 5-5 लाख टन भण्डारण क्षमता विभिन्न निजी कंपनियों से किराये पर ली गई है। बजट 2012-13 में वित्त मंत्री ने भण्डारण की नई क्षमता के निर्माण की खातिर 5000 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव रखा है। पिछले साल के बजट में इस मद में 2000 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे। पिछले ,क साल में सरकार ने 20 लाख टन भण्डारण की अतिरिक्त क्षमता को मंजूरी दी है, जिसके जल्द पूरा होने की संभावना है। देश में लाजिस्टिक की लागत जीडीपी का करीब 14 फीसदी है। लिहाजा पीपीपी माडल को प्रोत्साहित किया जाने की सलाह गलत नहीं है। ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास कोष के तहत गोदामों के निर्माण पर और अधिक व्यय में भारी बढ़ोतरी सही समय पर उठाया गया उचित कदम है। ऐसे में सरकार का जोर ब्याज की लागत घटने पर हो तो ज्यादा बेहतर काम हो सकता है। और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब निवेशकों को आरआईडीएफ को कोष का वितरण सीधे तौर पर नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) द्वारा किया जाए। इससे बैंकों की मध्यस्थता लागत को खत्म किया जा सकता है।